एक दिन एक युवा बौद्ध सन्यासी लम्बी यात्रा की समाप्ति पर अपने घर वापस जा रहा था। मार्ग में उसे एक बहुत बड़ी नदी मिली। बहुत समय तक वह सोचता रहा कि नदी के पार कैसे जाए। थक-हार कर निराश होकर वह दूसरे रस्ते की खोज में वापस जाने के लिए मुड़ा ही था कि उसने नदी के दूसरे तट पर एक महात्मा को देखा।
युवा सन्यासी ने उनसे चिल्लाकर पूछा – “हे महात्मा, मैं नदी के दूसरी ओर कैसे आऊँ?”
महात्मा ने कुछ क्षणों के लिए नदी को गौर से देखा और चिल्ला कर कहा – “पुत्र, तुम नदी के दूसरी ओर ही हो।”
Photo by Pablo Fierro on Unsplash
speechless……
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बशर्ते मान लें कि छोर है, नहीं तो मृगतृष्णा का कोई छोर नहीं !
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