क्रोधोपचार

एक ज़ेन शिष्य ने अपने गुरु से पूछा – “मैं बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता हूँ। कृपया मुझे इससे छुटकारा दिलाएं।”

गुरु ने कहा – “यह तो बहुत विचित्र बात है! मुझे क्रोधित होकर दिखाओ।”

शिष्य बोला – “अभी तो मैं यह नहीं कर सकता।”

“क्यों?” – गुरु बोले।

शिष्य ने उत्तर दिया – “यह अचानक होता है।”

“ऐसा है तो यह तुम्हारी प्रकृति नहीं है। यदि यह तुम्हारे स्वभाव का अंग होता तो तुम मुझे यह किसी भी समय दिखा सकते थे! तुम किसी ऐसी चीज़ को स्वयं पर हावी क्यों होने देते हो जो तुम्हारी है ही नहीं?” – गुरु ने कहा।

इस वार्तालाप के बाद शिष्य को जब कभी क्रोध आने लगता तो वह गुरु के शब्द याद करता। इस प्रकार उसने शांत और संयमित व्यवहार को अपना लिया।

Photo by Joshua Newton on Unsplash

There are 6 comments

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.