एक व्यापारी कपड़े के 50 थान लेकर दूसरे नगर में बेचने जा रहा था। मार्ग में एक स्थान पर वह सुस्ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वहीं पेड़ की छांव में भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भी लगी हुई थी। व्यापारी को बैठे-बैठे नींद लग गयी। कुछ समय बाद जागने पर उसने पाया कि उसके थान चोरी हो गए थे। उसने फ़ौरन पुलिस में जाकर रिपोर्ट लिखवाई।
मामला ओ-ओका नामक न्यायाधीश की अदालत में गया। ओ-ओका ने निष्कर्ष निकाला – ”पेड़ की छाँव में लगी बुद्ध की प्रतिमा ने ही चोरी की है। उसका कार्य वहाँ पर लोगों का ध्यान रखना है, लेकिन उसने अपने कर्तव्य-पालन में लापरवाही की है। प्रतिमा को बंदी बना लिया जाए।”
पुलिस ने बुद्ध की प्रतिमा को बंदी बना लिया और उसे अदालत में ले आए। पीछे-पीछे उत्सुक लोगों की भीड़ भी अदालत में आ पंहुची। सभी जानना चाहते थे कि न्यायाधीश कैसा निर्णय सुनायेंगे।
जब ओ-ओका अपनी कुर्सी पर आकर बैठे तब अदालत परिसर में कोलाहल हो रहा था। ओ-ओका नाराज़ हो गए और बोले – “इस प्रकार अदालत में हँसना और शोरगुल करना अदालत का अनादर है। सभी को इसके लिए दंड दिया जाएगा।”
लोग माफी मांगने लगे। ओ-ओका ने कहा – “मैं आप सभी पर जुर्माना लगाता हूँ, लेकिन यह जुर्माना वापस कर दिया जाएगा यदि यहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति कल अपने घर से कपड़े का एक थान ले कर आए। जो व्यक्ति कपड़े का थान लेकर नहीं आएगा उसे जेल भेज दिया जाएगा।”
अगले दिन सभी लोग कपड़े का एक-एक थान ले आए। उनमें से एक थान व्यापारी ने पहचान लिया और इस प्रकार चोर पकड़ा गया। लोगों को उनके थान लौटा दिए गए और बुद्ध की प्रतिमा को रिहा कर दिया गया।
वाह वाह ! क्या कहने .
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Aise hi nyaydhisho Ki jarurat hai aaj ke samay me.
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यह कहानी तो दयानंद सरस्वती को सुनानी थी, जो कहते थे कि प्रतिमा-निर्माण में दोष ही देखते थे। 🙂
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