मेइज़ी युग (1868-1912) के नान-इन नामक एक ज़ेन गुरु के पास किसी विश्वविद्यालय का एक प्रोफेसर ज़ेन के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए आया।
नान-इन ने उसके लिए चाय बनाई। उसने प्रोफेसर के कप में चाय भरना प्रारम्भ किया और भरता गया। चाय कप में लबालब भरकर कप के बहार गिरने लगी।
प्रोफेसर पहले तो यह सब विस्मित होकर देखता गया लेकिन फ़िर उससे रहा न गया और वह बोल उठा। ”कप पूरा भर चुका है। अब इसमें और चाय नहीं आयेगी”।
“इस कप की भांति”, – नान-इन ने कहा – ”तुम भी अपने विचारों और मतों से पूरी तरह भरे हुए हो। मैं तुम्हें ज़ेन के बारे में कैसे बता सकता हूँ जब तक तुम अपने कप को खाली नहीं कर दो”।
Photo by Suhyeon Choi on Unsplash
शुरू कर दिया हूँ। यह सही है कि कुछ की सफाई के बाद ही नये की आमद हो पाती है!
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very nice
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मनुष्य का दिमाग किसी भौतिक पात्र से भिन्न होता है उसे खाली करने के लिए तब और ध्यान की आवश्यकता होती है एवं तार्किक ज्ञान को साधना बनता है जिसके आधार पर अनावश्यक वस्तुओं को एवं विचारों को हम जबरदस्ती निकाल तो नहीं सकते लेकिन उन्हें अपने ज्ञान बल से समझ कर उन के पार जा सकते हैं सबको समझ कर उनके पार जाना और उनको निरर्थक और निष्क्रिय दशा में छोड़ देने की दशा को ही दिमाग को खाली करना कहते हैं यह काफी मुश्किल है अभ्यास से संभव है मैं झूम के इन विचारों का समर्थन करता हूं एवं प्रशंसा भी करता हूं. atisundar
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[…] चाय का प्याला […]
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