पंद्रहवीं शताब्दी में वर्तमान जर्मनी के न्यूरेमबर्ग शहर के समीप एक गाँव में एक परिवार रहता था जिसमें १८ बच्चे थे. इतने सारे बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए परिवार का मुखिया अर्थात उन बच्चों का पिता प्रतिदिन अठारह घंटे तक काम किया करता था. वह आभूषण बनाया करता था. इसके अतिरिक्त वह आस-पड़ोस के लोगों के छोटे-मोटे काम भी कर दिया करता था ताकि चार पैसे और कमा ले. परिवार की माली हालत खस्ता होने के बावजूद उसके दो बच्चों का सपना था कि वे महान कलाकार बनें. उन दिनों बड़े गुरु से किसी भी प्रकार की विद्या का अर्जन करना बहुत कठिन था. केवल धनी परिवारों के बच्चे ही मामूली कामों को छोड़कर कुछ विशेष सीखा करते थे.
पिता के लिए उन दोनों भाइयों को शिक्षा उपलब्ध करा पाना संभव नहीं था. दोनों भाई हमेशा इसी सोच में रहते थे कि किस प्रकार कला साधना के लिए धन जुटाया जाय. बहुत मनन करने के पश्चात उन्होंने इसका एक हल निकाल लिया. उन्होंने एक सिक्का उछाला. जिसका चित आता उसे पास की खदानों में जाकर मजदूरी करनी होती और जिसका पट आता वह कला की अकादमी में प्रवेश लेता. मजदूर भाई इस बीच दूसरे भाई के लिए अकादमी की फीस भरता रहता. अकादमी में पांच सालों तक पढने के पश्चात सीखकर निकलने पर कलाकार भाई अपने मजदूर भाई को अपनी कला से कमाए गए धन के दम पर अकादमी में प्रवेश दिला देता. ऐसा उन्होंने तय कर लिया.
अल्ब्रेख्त डुरेर नामक भाई ने टॉस जीत लिया और वह न्यूरेमबर्ग की कला अकादमी में चला गया. उसका भाई अलबर्ट डुरेर खतरनाक खदानों में पत्थर तोड़ने का काम करने लगा और अल्ब्रेख्त के लिए अगले पांच सालों तक पैसे भेजता रहा.
अल्ब्रेख्त अत्यंत प्रतिभाशाली था. अकादमी में वह कुशलतापूर्वक कला में निपुण होता गया और उसके द्वारा बनाई गई कलाकृतियाँ चर्चित होने लगीं. उसके बनाए गए तैलचित्र, लकड़ी के शिल्प, और एचिंग उसके गुरुओं की कलाकृतियों से भी बेहतर होते थे. जब तक उसके अकादमी छोड़ने का समय आया, वह प्रतिष्ठित कलाकार के रूप में स्थापित हो गया था. उन दिनों अकादमियों का अनुशासन बहुत कठोर होता था. विद्यार्थियों को बाहर जाने की अनुमति नहीं थी इसलिए इन पांच सालों में उसने अलबर्ट को नहीं देखा.
जब अल्ब्रेख्त अपने गाँव वापस आया तो उसके आगमन की ख़ुशी में डुरेर परिवार ने पूरे गाँव को भोजन पर आमंत्रित किया. सब ओर प्रसन्नता छाई हुई थी. अल्ब्रेख्त ने अपने प्रिय भाई अलबर्ट के लिए जाम उठाया जिसने उसे कलाकार बनाने के लिए कोई कम कठोर साधना नहीं की थी. उसने लोगों को धन्यवाद का अभिभाषण दिया और अलबर्ट से कहा – “मेरे प्यारे भाई अलबर्ट, अब अकादमी जाने की तुम्हारी बारी है. मैं न्यूरमबर्ग जाने के तुम्हारे सपने को पूरा करूंगा.”
सबकी निगाहें टेबल के दूसरे छोर पर बैठे अलबर्ट पर टिक गईं. अलबर्ट का चेहरा ज़र्द हो गया और उसकी आँखों से आंसू बह चले. भरे कंठ से वह सिसकते हुए बोला – “नहीं… नहीं… मैं नहीं…”
अलबर्ट उठा और उसने अपने आंसू पोछे. आसपास मौजूद सब लोगों को उसने देखा. फिर अपने चेहरे को अपने हांथों से ढांपकर वह बोला – “नहीं भाई. मैं न्यूरेमबर्ग नहीं जा सकता. अब बहुत देर हो गई है. देखो… देखो इतने वर्षों तक खदान में काम करते-करते मेरे हाथ कैसे हो गए हैं. हर हाथ की उँगलियाँ टूटकर टेढ़ी-मेढ़ी हो गई हैं. मेरे हाथ अब बुरी तरह से कांपते हैं. अब तो मैं पानी पीने के लिए ग्लास भी ठीक से नहीं पकड़ सकता. इन हाथों से मैं बारीक औजार और ब्रश कैसे उपयोग में लाऊँगा! मैं अब कभी कोई काम नहीं कर पाऊँगा. अब बहुत देर हो गई है भाई.”
इस बात को लगभग ५०० साल बीत चुके हैं. अल्ब्रेख्त डुरेर द्वारा बनाये गए सैंकडों तैलचित्र, जलरंग, स्केच, चारकोल, वुडकट, एचिंग, ड्राइंग, एनग्रेविंग आदि विश्व के सबसे बड़े संग्रहालयों में प्रर्दशित हैं और उनकी कीमत अरबों रुपये है. आप में से बहुत से लोगों ने शायद अल्ब्रेख्त डुरेर का नाम आज पहली बार पढ़ा हो. जो उसके बारे में पहले से कुछ जानते हैं उन्होंने भी उसकी कलाकृतियों के सस्ते प्रिंट ही दीवारों पर लगे देखे होंगे.
एक दिन, अलबर्ट द्वारा किये गए महान निस्वार्थ त्याग को कला के रूप में ढालने के लिए अल्ब्रेख्त ने उसके हांथों का चित्र बनाया. इस अप्रतिम ड्राइंग को उसने शीर्षक दिया ‘हाथ’. लोगों ने जब इस ड्राइंग को देखा तो सबके मुख से बरबस यही निकला ‘प्रार्थना के हाथ’.
अगली बार जब आप इस ड्राइंग को कहीं लगा देखें तो इसे अल्ब्रेख्त और अलबर्ट के प्रसंग से जोड़कर ही देखें. तभी आप इसके वास्तविक सौन्दर्य की परख कर पायेंगे.
(ऊपर दिया गया अल्ब्रेख्त डुरेर का चित्र उसने सन 1500 ईस्वी में स्वयं ही बनाया था. इसे देखकर आप उसकी प्रतिभा का आकलन कर सकते हैं. साथ ही है ‘प्रार्थना के हाथ’ चित्र. दोनों चित्र विकिपीडिया से)
एक बार पढ़ा, दो बार पढ़ा, तीन बार पढ़ा। प्रार्थना के हाथ को महसूस किया।
पसंद करेंपसंद करें
धन्य है अल्बर्ट!
पसंद करेंपसंद करें
त्याग एवं भ्रातृत्व की अप्रतिम सत्य कथा
पसंद करेंपसंद करें
दुनिया के सबसे खूबसूरत हाथ!
पसंद करेंपसंद करें
कहानी में ये नहीं पता चला की मजदूर भाई को उसके बाद मजदूरी करने से मुक्ति मिली की नहीं क्या वो उसके बाद आराम से रह पाया , और उसे कितना श्रेय मिला किसी अल्ब्रेख्त डुरेर जैसे कलाकार के निर्माण के लिए क्योकि असली धन्यवाद तो वही होगा |
पसंद करेंपसंद करें
अत्यंत उत्कृष्ट प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
पसंद करेंपसंद करें
Really ….Nice
Similar My life is also the result of some’s Dedication .. My brother You are in my words
पसंद करेंपसंद करें
great story ,ur post is came after one month,i was waiting for ur post
पसंद करेंपसंद करें
Prarthna ke Sath Anupam Prem ke Hath
पसंद करेंपसंद करें
Reblogged this on "देवेंद्र का ब्लॉग".
पसंद करेंपसंद करें
Haath to Parmatma ne sabhi ko diye hai par unhe sarthak koi koi hee kar paata hai. maarmik prastuti ke liye saduwaad.
पसंद करेंपसंद करें