क्या तुम मनुष्य हो? प्रेम में तुम्हारी जितनी गहराई हो, मनुष्यता में उतनी ही ऊंचाई होगी. और परिग्रह में जितनी ऊंचाई हो, मनुष्यता में उतनी ही क्षुद्रता होगी. प्रेम और परिग्रह जीवन की दो दिशाएं हैं. प्रेम पूर्ण है, तो परिग्रह शून्य हो जाता है. और जिनके चित्त परिग्रह से घिरे रहते हैं, प्रेम वहां आवास नहीं करता है.
एक साम्राज्ञी ने मृत्यु उपरांत उसकी कब्र के पत्थर पर निम्न पंक्तियां लिखने का आदेश दिया था : ”इस कब्र में अपार धनराशि गड़ी हुई है. जो व्यक्ति अत्यधिक निर्धन और अशक्त हो, वह उसे खोद कर प्राप्त कर सकता है.”
उस कब्र के पास से हजारों दरिद्र और भिखमंगे निकले, लेकिन उनमें से कोई भी इतना दरिद्र नहीं था कि धन के लिए किसी की कब्र खोदे. एक अत्यंत बूढ़ा और दरिद्र भिखमंगा तो उस कब्र के पास ही वर्षो से रह रहा था और उधर से निकलने वाले प्रत्येक दरिद्र व्यक्ति को उस पत्थर की ओर इशारा कर देता था.
फिर अंतत: वह व्यक्ति भी आ पहुंचा जिसकी दरिद्रता इतनी थी कि वह उस कब्र को खोदे बिना नहीं रह सका. वह व्यक्ति कौन था? वह एक सम्राट था और उसने उस देश को अभी-अभी जीता था. वहां आते ही उसने कब्र को खोदने का कार्य शुरू कर दिया. उसने थोड़ा भी समय खोना ठीक नहीं समझा. पर उस कब्र में उसे क्या मिला? अपार धनराशि की जगह मिला मात्र एक पत्थर, जिस पर खुदा हुआ था : ”मित्र, क्या तुम मनुष्य हो?”
निश्चय ही जो मनुष्य है, वह मृतक को सताने के लिए कैसे तैयार हो सकता है! लेकिन जो धन के लिए जीवित को भी मृत बनाने को सहर्ष तैयार हो, उसे इससे क्या फर्क पड़ता है!
निराश और अपमानित हो उस कब्र से लौटते समय उस सम्राट ने वहां रहने वाले बूढ़े भिखमंगे को जोर से हंसते हुए देखा. वह भिखमंगा कह रहा था, ”मैं कितने वर्षो से प्रतीक्षा करता था, अंतत: आज पृथ्वी पर जो दरिद्रतम निर्धन और सर्वाधिक अशक्त व्यक्ति है, उसके भी दर्शन हो गए.”
प्रेम जिस हृदय में नहीं है, वही दरिद्र है, वही दीन है, वही अशक्त है. प्रेम शक्ति है, प्रेम संपदा है, प्रेम प्रभुता है. प्रेम के अतिरिक्त जो किसी और संपदा को खोजता है, एक दिन उसकी ही संपदा उससे पूछती है : ”क्या तुम मनुष्य हो?”
ओशो के पत्रों के संकलन ‘पथ के प्रदीप’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेन्द्र.
प्रेम ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है।
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सत्यवचन !
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प्रेम की दौलत पाने वाले और देने वाले ही मनुष्य होते हैं और धन्य होते हैं. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
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वाह! सुन्दर। प्रेरक!
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सुन्दर कथा ! वैसे आजकल खासकर बड़े शहरों में कब्रें खोदकर उस स्थान पर अट्टालिका बनाकर बेचने वालों की कमी नहीं ! कब्र के नीचे तो नहीं पर उस स्थान से तो धन अर्जन हो ही रहा है ! सचमुच मनुष्य तो खोजने पड़ते हैं !
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ठीक कहा आपने
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ओह, सम्राट गिद्ध हुआ करते हैं!
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प्रेम जिस हृदय में नहीं है, वही दरिद्र है, वही दीन है, वही अशक्त है. प्रेम शक्ति है, प्रेम संपदा है, प्रेम प्रभुता है. प्रेम के अतिरिक्त जो किसी और संपदा को खोजता है, एक दिन उसकी ही संपदा उससे पूछती है : ”क्या तुम मनुष्य हो?”
क्या बात ….ओह….
लाजवाब…!!!!
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manushy ho sakta tha nahi huaa KAAG BHAGODE jaisa khet me khada JHUTHA manushy H. jise dusron ko darane me AANAND aata H. prem ? qse kare.
good katha H.
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bahut hi badhiya baat batai gai hai
dhanyawaad
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aisi baat kahin bhi sunne ko nahi milegi
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