(यह कथा ओशो ने अपने एक प्रवचन में कही है)
“प्रेम क्या है?”. कल कोई पूछ रहा था.
मैंने कहा – “प्रेम जो कुछ भी हो, उसे शब्दों में कहने का कोई उपाय नहीं है क्योंकि वह कोई विचार नहीं है. प्रेम तो अनुभूति है. उसमें डूबा जा सकता है पर उसे जाना नहीं जा सकता. प्रेम पर विचार मत करो. विचार को छोड़ो और फिर जगत को देखो. उस शांति में जो अनुभव में आएगा वही प्रेम है.
और फिर मैंने एक कहानी भी कही. किसी बाउल फकीर से एक पंडित ने पूछा – “क्या आपको शास्त्रों में वर्गीकृत किये गए प्रेम के विभिन्न रूपों का ज्ञान है?”
वह फकीर बोला – “मुझ जैसा अज्ञानी भले शास्त्रों की बातें क्या जाने!”
यह सुनकर पंडित ने शास्त्रों में वर्गीकृत किये गए प्रेम के विभिन्न रूपों की विस्तार से चर्चा की और फिर इस संबंध में बाउल फकीर का मंतव्य जानना चाहा.
बाउल फकीर खूब हंसा और बोला – “आपकी बातें सुनते समय मुझे यह लग रहा था जैसे कोई सुनार फूलों की बगिया में घुस आया हो और फूलों के सौंदर्य को स्वर्ण की परख करने वाले पत्थर पर घिस-घिस कर जांच रहा हो”.
kitni khoobsurti se prem ko samjhaya hai.
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शांति में जो नजर आएगा , वही प्रेम है …
बहुत अच्छी पोस्ट ..!
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यह शब्द ही ऐसा है चिर प्राचीन मगर चिर नवीन भी -जादुई आकर्षण से अपनी तरफ खींचता है
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यही हो रहा है, आधुनिक सुनार फूलों की बगिया में न केवल घुस आये हैं वरन उसे तहस नहस भी कर रहे हैं।
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very good and true…..
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प्रेम विषय पर जितना कवि, लेखक, प्रवचन करने वाले लिखते या कहते हैं उतना शायद किसी और विषय पर लिखते/कह्ते नहीं होंगे।
प्रेम एक जादूई अनुभव/अनुभूति है जिसे हम अलग अलग समय पर, बचपन/जवानी/वृद्धावस्था में अलग अलग तरीके से अनुभव करते हैं।
पर जब भी प्रेम करते हैं, किसी से भी करते हैं कितना भी करते हैं, मन/आत्मा/दिल को अच्छा लगने लगता है।
प्रेम अनुभव करने वाला भी और प्रेम पाने वाला भी।
हम तो इसका विश्लेषन करने के बजाय इस का अनुभव करना पसन्द करेंगे।
फ़कीर उस पंडित से ज्यादा ज्ञानी है।
अच्छी प्रस्तुति।
पढवाने के लिए आभार
जी विश्वनाथ।
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हम मनोयोग से यह कथा पढ़ेंगे और फिर संजोलेंगे अपने ज्ञान में – किसी ढ़ंग की जगह कोट करने के लिये।
अनुभूति के लिये शायद अक्षर निषेध काम आये।
निकल लें बाहर बिना कापी किताब के! नहीं?
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वाह …क्या बात कही…
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प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो
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निशांत जी ….. जैसे कोई सुनार फूलों की बगिया में घुस आया हो और फूलों के सौंदर्य को स्वर्ण की परख करने वाले पत्थर पर घिस-घिस कर जांच रहा हो”….ओशो साब की बात सिद्ध बात होती है उसे तो वे स्वयं ही काट सकते थे .बहुत सुंदर अहसास ,आनंद आ गया .
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ओशो प्रेम के अद्भुत चितेरे हैं । प्रेम के प्रत्येक पक्ष सहज ही उद्घाटित है उनके वक्तव्यों में ! कितनी ही कथाएं यूँ ही सम्मुख हैं हमारे !
सच ही है..प्रेम है तो शास्त्र कहाँ ? प्रेम का अनिर्वचनीय अनुभव स्वयं में एक शास्त्रीय ज्ञान की चरम उपलब्धि है ! सारे शास्त्र झूठे..समस्त विचार नत !
सुन्दर कथा के लिए आभार !
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i Like This Topic Very much. i want to more about this topic.
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very nice….
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love is life dont leave it in the hand of knowledgeless people
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