दुनिया नई-नई बनी थी और एक बूढ़ा आदमी अपनी बुढ़िया पत्नी के साथ टहल रहा था. बूढ़े ने बुढ़िया से कहा – “चलो, हम यह तय करते हैं कि यह दुनिया कैसे चले.”
“ठीक है” – बुढ़िया ने कहा – “यह कैसे होगा?”
“हम्म…” – बूढ़े ने कहा – “चूंकि यह बात मेरे मन में पहले आई है इसलिए किसी भी मामले में मेरी बात पहले मानी जाएगी”.
“ठीक है” – बुढ़िया बोली – “फिर तुम्हारे बाद मैं जो भी कहूं उसे मान लिया जायेगा.”
बूढ़ा इससे सहमत हो गया.
वे अपने आसपास देखते हुए घूमते-फिरते रहे. बूढ़े ने कहा – “मैं शिकार के तरीके के बारे में सोच रहा हूँ. आदमी शिकार किया करेंगे. जब भी वे किसी जानवर को पकड़ना चाहेंगे तो उसे इशारा करके अपने पास बुला लिया करेंगे. जानवर के पास आ जाने पर उसका शिकार कर लेंगे.”
“मैं यह बात तो मानती हूँ कि आदमी शिकार करेंगे” – बुढ़िया ने कहा – “लेकिन यदि जानवर इस तरह इशारा करने पर ही पास आने लगेंगे तो लोगों का जीवन बहुत आसान हो जायेगा. मैं चाहती हूँ कि मनुष्यों को देखकर जानवर डर के भाग जाएँ. इस तरह उनका शिकार करना मुश्किल हो जायेगा और आदमी हमेशा मजबूत और होशियार बने रहेंगे.”
“जैसा हम तय कर चुके हैं, तुम्हारी बात तो माननी ही पड़ेगी” – बूढ़े ने कहा.
वे घूमते-फिरते रहे.
कुछ समय बाद बूढ़े ने कहा – “मैं लोगों के नाक-नक्श के बारे में सोच रहा हूँ. उनके सर के एक ओर आँखें होंगी और दूसरी ओर मुंह. उनके हर हाथ में दस उँगलियाँ होनी चाहिए.”
“मैं भी यह मानती हूँ कि लोगों के सर में आँखें और मुंह होना चाहिए” – बुढ़िया ने कहा – “लेकिन उनकी आँखें एक ओर ऊपर की तरफ होंगी और उनका मुंह उसी ओर कुछ नीचे होना चाहिए. उनके हांथों में उँगलियाँ होनी चाहिए पर हर हाथ में दस उँगलियाँ होने से कामकाज में अड़चन होगी इसलिए हर हाथ में पांच उँगलियाँ होना ठीक रहेगा.”
“तुम्हारी बात तो माननी ही पड़ेगी” – बूढ़ा बोला.
चलते-चलते वे नदी के पास आ गए. “चलो अब ज़िंदगी और मौत के बारे में भी तय कर लेते हैं” – बूढ़े ने कहा – “इसके लिए मैं इस नदी में भैंस की खाल फेंकूंगा. यदि यह तैरती रहेगी तो लोग मरने के चार दिनों के बाद फिर से जिन्दा हो उठेंगे और फिर हमेशा जीते रहेंगे.”
बूढ़े ने नदी में खाल फेंक दी. एक डुबकी लगाने के बाद खाल नदी की सतह पर आ गयी. बुढ़िया ने कहा – “मैं इस तरीके से सहमत हूँ पर मुझे लगता है कि इस काम के लिए भैंस की खाल का उपयोग ठीक नहीं है. उसके बजाय मैं यह पत्थर नदी में फेंकूँगी. यदि यह तैरता रहेगा तो लोग मरने के चार दिनों के बाद फिर से जिन्दा हो उठेंगे और फिर हमेशा जीते रहेंगे, लेकिन यदि यह डूब जायेगा तो लोग मरने के बाद कभी वापस नहीं आयेंगे.”
बुढ़िया ने पत्थर नदी में फेंक दिया और वह एकदम से डूब गया.
“तो ऐसा ही होगा” – बुढ़िया ने कहा – “यदि लोग हमेशा जीवित रहेंगे तो दुनिया में बहुत भीड़ हो जाएगी और खाने की कमी भी पड़ जाएगी. जब लोग मरने के बाद कभी भी वापस नहीं आयेंगे तो लोगों को उनकी कमी खलेगी और दुनिया में सहानुभूति का अभाव नहीं होगा.”
बूढ़े ने कुछ नहीं कहा.
कुछ समय बीत गया. बुढ़िया ने एक बच्चे को जन्म दिया. बूढ़ा और बुढ़िया अपने बच्चे पर जान छिड़कते थे. वे बहुत खुश थे. फिर एक दिन बच्चा बहुत बीमार पड़ गया और उसकी मौत हो गयी.
बुढ़िया अपने पति के पास गयी और उससे बोली – “चलो हम ज़िंदगी और मौत के बारे में फिर से तय कर लेते हैं.”
बूढ़े ने बहुत नाउम्मीदी से कहा – “अब कुछ नहीं हो सकता. हम सबसे पहले यह तय कर चुके हैं कि बाद में तुम्हारी बात ही मानी जाएगी.”
(A Native American folk-tale retold by Joseph Bruchac)
Photo by Alessio Lin on Unsplash
very emotional and touching story. thanks for shairing..
regards
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बहुत उम्दा, बहुत मर्मस्पर्शी और अनेक पहलुओं को इंगित करती कथा – मानव स्वभाव के।
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विचारणीय।
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khoob hai ! lage raho!
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एक्स्ट्राऑर्डिनरी,विस्मयकारी कथा -दुनिया का रेह्वासा, जीवन -मृत्युदर्शन इतना कुछ है इस प्रसंग में की लिखने को शब्द नहींमिल रहे .जी चाह रहा फिर पढूं सो कर रहा हूँ
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bahut hi mamsparshi katha hai lage raho munna bhai…
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very strong story is the life .thanks
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