हिंदीज़ेन ब्लॉग में कभी-कभार हल्की-फुल्की सामग्री भी प्रस्तुत की जाती है. इसी क्रम में आज पेश है
श्री गोपालप्रसाद व्यास की मशहूर कविता “आराम करो”.
एक मित्र मिले, बोले, – “लाला, तुम किस चक्की का खाते हो
इस डेढ़ छटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो
क्या रक्खा है माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो
संक्रांति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो”
“हम बोले, रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो
आराम ज़िंदगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है
आराम शब्द में ‘राम’ छुपा, जो भवबंधन को खोता है
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है
इसलिए तुम्हें समझाता हूं, मेरे अनुभव से काम करो
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो
यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो और न तुम उत्पात करो
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में
जो होंठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ मिलाने में
तुम मुझसे पूछो, बतलाऊं – है मजा मूर्ख कहलाने में
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में
मैं यही सोचकर पास अकल के, कम ही जाया करता हूँ
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ
दीये जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ
मेरी गीता में लिक्खा है – सच्चे योगी जो होते हैं
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफिक्री से सोते हैं
अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊंचा उठ जाता है
जब ‘सुख की नींद’ कढ़ा तकिया इस सर के नीचे आता है
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है
भावों का रश हो जाता है, कविता भी उमड़ी पड़ती है
मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊंटों की उपमा देता हूँ
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं
छत के कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो.
(A poem on merits of keeping rest – Pt. Gopal Prasad Vyas)
आराम करो …आराम करो ….हम गृहणियां आराम कर ले तो खाना कौन पकाएगा …ये काम तो तोंद फुलाए थुलथुलों को ही शोभा देता है …चले, रसोई में कुछ चाय नाश्ते का इंतजाम करे ..!!
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सुनी हुई…मगर फिर आनन्द आया..आभार प्रस्तुति का.
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे – यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें – यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
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मस्त मजा आ गया।
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प्रिय निशांत जी,
बड़ा ही अजब-गजब फिल्सफा-ये-जिन्दगी प्रस्तुत कर दीया है आपने, हाँस्य-रस से ओतप्रोत यह रचना निख्तूऔ को खूब पसंद आएगी / फिर भी उनके लिए भी कुछ सन्देश छुपा है जो कर्मयोगी है की कुछ तो आत्म चिंतन बिस्तर पर ही सहूलियत भरा होता है लिहाजा आराम भी बड़े काम की चीज है तभी तो किसी ज्ञानी ने कहा है–” किस किस को याद कीजिये किसकिस को रोईये, आराम बड़ी चीज है मुह ढक कर सोयिये ”
थैंक्स/
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पहली बार इस ब्लाग पर काम की बात छपी है! 🙂
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बचपन में बाल भारती में थी ये कविता ।
बढिया है ।
बहुत पुराने दिन याद आ गये ।
मन प्रसन्न हो गया ।
व्यास जी को नमन है ।
और आप को भी ।
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चलो !आराम करता हूँ !
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बेहद सुन्दर प्रस्तुति ! पढ़ी नहीं थी यह कविता ! आभार ।
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WAAH !!!! DIVYA GYAAN !!!
BAHUT BAHUT LAJAWAAB !!!!
PADHWANE KE LIYE AABHAR…
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निशांत मजे आ गए…इसको कहते है हास्य रस ! धन्यवाद व्यास जी का ये रचना लिखने के लिए और आपको इसे यहाँ छापने के लिए…और एक बात फोटो भी बिलकुल कविता में रची-बसी लग रही है !!
शुभकामनाएं !!
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भाई आनन्दित कर दिया, मैं अभी १२ बज़े दिन में सो के उठा हूँ, और रज़ाई में लेटे-२ बड़ी मुश्किल से टाइप कर रहा हूँ, क्योंकि बात ही इतने कायदे की कही आप ने। मैं तो भजन गाता था…किस किस को रोईये, किस किस को गाईये, आराम बड़ी चीज़ है मुंह ढ़क के सोयिए।
अब आप का ये गीत भी मेरी भजन श्रखला में विराजमान हो गया है।
जै हो आराम मैया की
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bahut bahut shukriya is kavita ke liye
mere ko hindi fonts me likhana nahi aata warana jaroor hindi fonts me hi likhati .
dhanywad
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ajj mera first day hai ki dushayant kumar sahab ki poem reading kar raha hu
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अति सुंदर कविता है 🙏
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