हिंदी ब्लॉग जगत में आयेदिन घमासान मच रहा है. सबकी अपनी-अपनी सोच है और बात को रखने का अपना-अपना अंदाज. देखने में यही आ रहा है कि आलोचना का स्वर बड़ा मुखर है. कोई बात किसी को जमी नहीं कि दन्न से एक पोस्ट ठोंक दी. बहुत से नवोदित ब्लॉगर हैं जो असहमति की दशा में अतिउत्साह में प्रतिकूल पोस्ट कर देते हैं. आलोचना स्वस्थ भी हो सकती है, केवल आलोचना करने के लिए भी हो सकती है, और हंगामा बरपाने के लिए भी. यदि आलोचना स्वस्थ और संतुलित नहीं है तो इससे व्यर्थ का विवाद उत्पन्न होता है, मन में खिन्नता उत्पन्न होती है, और हमारा पूरा ध्यान उस दौरान छप रही अच्छी पोस्टों से हट जाता है. अतएव धैर्य से काम लें और कुछ ऐसा करें जिससे सभी को अच्छा लगे.
अब पढ़ें आज की पोस्ट जो इस दौर पर मौजूं है.
जर्मनी की महान महिला विचारक रोज़ा लक्ज़मबर्ग के खिलाफ़ किसी ईर्ष्यालू व्यक्ति ने अखबार में कुछ उल्टा-सीधा लिख दिया. रोज़ा ने इसपर कोई प्रतिक्रिया ज़ाहिर नहीं की. उनके शुभचिंतकों ने इसको लेकर रोज़ा से शिकायत की – “इन बातों का खंडन आपको करना ही चाहिए. आपके चुप रहने पर तो लोग आपको संदेह की दृष्टि से देखने लगेंगे.”
इसपर रोज़ा ने उनसे कहा – “मेरे पिता मुझसे बचपन में हमेशा कहा करते थे ‘जब हम दूसरों के दोषों की ओर इशारा करते हैं तो हमारी एक उंगली तो दोषी की ओर होती है लेकिन बाकी की तीन उंगलियां अपनी ही तरफ होती हैं.’ जिसने भी यह समाचार छपवाया है उसने मेरी तुलना में स्वयं को तीन गुना दोषी तो पहले ही स्वीकार कर लिया है, फिर उसका विरोध करने ले क्या लाभ”?
कुछ कहिए?
(A motivational / inspirational anecdote of Rosa Luxembourg – in Hindi)
अच्छी सीख है कहानी में.
पसंद करेंपसंद करें
पर यहां पर तो सब सिखाने वाले हैं
फिर सीखेगा कौन
जो रहेगा मौन।
पसंद करेंपसंद करें
baat to sahi hai.
पसंद करेंपसंद करें
यह कथा रोज़ा लक्ज़म्बर्ग के नाम से न भी हो तो नीतिकथा तो है ही ,अर्थात जिनकी नीति उनकी कथा ।एक सीमा तक स्वस्थ्य आलोचना की परम्परा होनी चाहिये अन्यथा सब कुछ कचरे से भर जायेगा ।
पसंद करेंपसंद करें
सही कहा है पर आजकल की चर्चाओ (?) से मन विचलित हो जाता है.
पसंद करेंपसंद करें
सुन्दर्! बात्!
पसंद करेंपसंद करें
Waise ek ungli bhagwaan ke uppar bhi rehti hai…
पर यहां पर तो सब सिखाने वाले हैं
फिर सीखेगा कौन
जो रहेगा मौन।
sahi kaha avinash ji ne
पसंद करेंपसंद करें
बहुत सुन्दर..
पसंद करेंपसंद करें
बहुत हीं सुन्दर उदाहरण दिया है आपने । पढ़कर अच्छा लगा । आभार ।
पसंद करेंपसंद करें
अच्छा; यह रोज़ा लक्ज़मबर्ग का कथन है। सुना बहुत बार है बिना उनके नाम के प्रयोग के।
पसंद करेंपसंद करें
nice
पसंद करेंपसंद करें
thik bat hai, matlab achi bat hai 🙂
पसंद करेंपसंद करें
काश ये तीन उंगली खुद की तरफ होने वाली बात हम सबको समझ में आ पाती – बहुत ही सुन्दर चर्चा..
मैं बहुत दिनों के बाद एक बार पुन: सक्रिय हुआ हूँ ब्लॉग्गिंग में, और इस तरह के ब्लॉग पे ऐसी जबरदस्त सकारात्मक पोस्ट पढ़ के दिन की शुरुवात मस्त हो गई….
आपके विचारों के जरिये, इस समाज के बौद्धिक विकास में आपका योगदान सराहनीय है…
पसंद करेंपसंद करें
kuch stambh aise hote hai jinka manan hi bhehtar hota hai,
bajay kuch kahne ke.
पसंद करेंपसंद करें
110% bat sach hai .
पसंद करेंपसंद करें